Best kahani for kids in Hindi - दहेज का लोभ हिंदी कहानी

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Kahani:–  कश्मीर राज्य में बर्फीले पर्वतों से घिरा हुआ लद्दाख नाम का एक बड़ा ही सुन्दर क्षेत्र है। लेह यहाँ का नगर है। चारों ओर फैली हुई हरियाली, नीले रंग की नयनों को लुभाने वाली झीलें, चारों ओर खड़े आसमान को इते पर्वत इसके आकर्षण को अधिक बढ़ा देते हैं।


एक बार जम्मू शहर के हाथियों का दल घूमता लेह नगर के एक वन में आया । वह उन्हें अधिक भाया। इस दल की नेता आदर्श नाम की हथिनी ने कहा-'अरे। इस स्थान को देखकर तो लगता है, मानों स्वर्ग में ही आ पहुँचे हों। यदि आप सभी सहमत हों तो हम अपना स्थान यहीं पर बना लें।
दल के सभी हाथी और हथिनी भी जैसे यही सोच रहे थे। उन्होंने एक-दूसरे की सूड़ से सूड मिला, चिंघाड़कर नेता की इस बात का समर्थन किया ।
धीरे-धीरे लेह के उस वन में बहुत से और भी हाथी आकर बसने लगे । हाथियों की एक बहुत बड़ी बस्ती ही यहाँ बन गयी।

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 स्वभाव में परिवर्तन

पंकज नाम के एक हाथी ने भी उस जगह की बड़ी प्रशंसा सुनी थी। पंकज एक सर्कस कम्पनी में काम करता था । जब बुड्ढा हो गया तो उसके मालिक ने उसे वन में छोड़ दिया । सर्कस के डेरे से रात में चुपचाप वह अपने बेटे जय को भी ले आया । रात ही रात में दोनों बाप-बेटे जल्दी-जल्दी लेह के वन की ओर कदम बढ़ाने लगे, जिससे कि सुबह होते ही कहीं वे सर्कस के कर्मचारियों की पकड़ में न आ जायें।

अन्त में दोनों लेह के वन में पहँच ही गये। वहाँ जाकर पंकज ने आदर्श हथिनी को अपना परिचय दिया और लोकप्रिय हो गया। इसका कारण था-उसका अच्छा व्यवहार, मीठी वाणी, दूसरों की सहायता करने की आदत । पंकज का बेटा जय भी अपने पिता की भाँति गुणवान था। माता-पिता के संस्कार निश्चित रूप से बच्चों पर पड़ते हैं। बच्चे उपदेश से नहीं उनके आचरण से सीखते हैं । जय का व्यवहार भी बड़ा ही सौम्य था। बड़ों से प्रतिदिन नमस्ते करता, सत्य बोलता, किसी से कड़वी बात न कहता | सारे दिन वह परिश्रम करता रहता या। देखने में भी वह बहुत सुन्दर था । सफेद दूध-सा रंग, आगे को निकलते चमकते हुए दो दाँत, मस्तक से बहता मदजल जो भी उसे देखता मुग्ध हो जाता । उसके गुणों ने उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा दिये थे।
आदर्श की एक ही बेटी थी-मधु । जब वह युवती हो गयी तो उसने सोचा- क्यों न मधु का विवाह जय के साथ कर दिया जाय । जय जैसा वर ढूँढने पर भी नहीं मिलेगा । फिर बेटी भी अपनी आँखों के सामने रहेगी।'
आदर्श ने जब यह बात अपने पति जितेन्द्र को बताई तो उन्हें भी बड़ी खुशी हुई । दूसरे ही दिन विवाह का प्रस्ताव लेकर वे पंकज के घर चल पड़े।
"यह बड़ा ही सौभाग्य है जो आज आप मेरे यहाँ आये
है । बताइये मैं आपकी क्या सेवा करूँ ?' उन्हें जलपान करने के बाद पंकज ने पूछा ।।
'भाई साहब ! बात यह है कि हम जय बेटे के साथ अपनी बिटिया मधु के विवाह का प्रस्ताव लेकर आये हैं । कैसी ही सुन्दर गुणवान जोड़ी रहेगी दोनों की । सुन्दर-सी कल्पनाओं में डूबी आदर्श ने ही बात का जबाव दिया । वह सोच रही थी कि निश्चित ही पंकज इस प्रस्ताव को) प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेगा। उसकी प्यारी बेटी मधु सारे वन में अपनी बुद्धि व सद्व्यवहार के लिये प्रसिद्ध थी ।'
पकज यह बात सुनकर सकपका गया । 'बहिन जी में आपकी बात स्वीकार कर लेता.....पर अपनी रॉड से सिर खुजाते हुए वह झल्लाकर बोला-'क्योंकि उसे तो स्वप्न में भी ऐसी उम्मीद न थी।'

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चूहे की विदेश यात्रा

पर क्या? जिज्ञासा से जितेन्द्र ने अपनी छोटी-छोटी आँखें उसके चेहरे पर गढ़ाकर पूछा।
वास्तव में भाईसाहब बात यह है कि मेरे एक ही बेटा है । मैंने प्रतिज्ञा कर ली है कि जहाँ से बहुत-सा दहेज मिलेगा, वहीं से मैं उसका विवाह करूँगा । साफ-साफ बताइये कि दहेज में आप अपनी बेटी को क्या-क्या देंगे?' पंकज कुछ देर चुप रहने के बाद बोला ।
आदर्श यह सुनकर गुस्से से भर उठी । वह तुरन्त उठकर खड़ी हो गयी। चिंघाड़कर बोली-'ओह ! तो आप अपने बेटे
का सौदा करना चाहते हैं । इतने वर्षों तक मनुष्यों की संगति में रहकर इस विषय में आप भी उनके जैसे लालची, मूर्ख और नीच बन गये हैं। मुझे ऐसा पता होता तो मैं कभी न आती आपके द्वार पर ।
फिर आदर्श जितेन्द्र को अपनी सूड़ से खींचती हुई बोली- चलो चलें जितेन्द्र । दहेज के लोभी राक्षस से अपनी बेटी हमें नहीं ब्याहनी । अच्छा है जो यह पहले पता लग गया नहीं तो बाद में न जाने क्या-क्या दुःख देता हमारी बिटिया को।
जाते-जाते वह यह भी कह गयी- पंकजजी । बेटी को विदा करते समय उसे नया घर बसाने के लिये हर माता-पिता कुछ न कुछ देते ही हैं । मैं भी जरूर देती, पर आपकी बातें सुनकर ही मेरा माथा ठनक गया है । दहेज के आप जैसे लोभी ही बहुओं को मारते-पीटते हैं, उनके प्राण लेते हैं ।
पलभर में ही सारे वन में यह बात आग की तरह फैल गयी। सभी हाथी पंकज पर थ-थ करने लगे । उसके सारे गुणों को इस एक अवगुण ने धूमिल बना दिया । सभी कहने लगे-'निश्चित ही यह कुविचार मनुष्यों की संगति में रहने के कारण आया है ।'
महेन्द्र दादा जो बहत ही वृद्ध और अनुभवी थे, उन्होंने बताया कि किस प्रकार मनुष्य समाज में यह कुप्रथा है ? दहेज के लोभी वर के पिता बेटी के पिता का घरद्वार तक बिकवा देते हैं। वे उसे दहेज जुटाने के लिये रिश्वत लेने, चोरी करने और भी बहुत पाप करने पर मजबूर कर देते हैं । _____ 

'ओह ! तभी यह पंकज भी इतना धूर्त है । इसे तो वापस उन्हीं धूर्तों के समाज में भेज देना चाहिये ।' वृद्धा कौशल्या हथिनी ने सुझाव दिया ।
कई दिनों तक सारे के सारे वन में इस बात की चर्चा रही । चार हाथी जहाँ भी जुड़ते यही बात करते ।
उधर आदर्श हथिनी इस बात को लेकर चिंतित थी कि वह मधु के योग्य वर कहाँ ढूँढे 1 सौभाग्य से तभी उसके गुरुजी और गुरुआनीजी लेह के उस वन में देशाटन करते हुए पधारे । आदर्श की चिन्ता का कारण सुनकर गुरुजी मुस्करा
पड़े । उन्होंने एक तेज चलने वाले हाथी को बुलाया और | उसके कान में देर तक कुछ कहा। जब वह हाथी चला गया तो हाथियों के गुरुजी आदर्श से बोले-'जाओ बेटी । अपनी पत्री के विवाह की जोर-शोर से तैयारी करो । कल शाम को ही एक योग्य वर आ जायेगा ।'
। 'सो कैसे ?' आदर्श ने उत्सुकता से पूछा ।


'तुम जानती ही हो कि मेरे धर्म सम्प्रदाय में अनेकों योग्य शिष्य दीक्षित हैं । मेरा वे इतना सम्मान करते हैं कि आज्ञा टाल नहीं सकते । अभी जो हाथी गया है न, उसके द्वारा मैंने एक शिष्य को बुलाया है । वह बहुत अधिक सुन्दर तो नहीं है, पर इतना विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि उसकी योग्यता में कोई कमी नहीं । मधु बिटिया को कभी वह दुःख नहीं देगा ।'
आदर्श कृतज्ञता से भर उठी । झुककर सूंड़ से उसने गुरुजी के पैर छुए और झूमते-झूमते बाहर निकल गयी । सभी को यह शुभ सन्देश सुनाने । दूसरे दिन सभी हाथियों ने मिलकर नदी के किनारे का भाग खूब साफ किया, खूब सजाया । जगह-जगह बन्दनवार, केला के पत्ते और फलों की डाल लगाई गयीं । एक ऊँचे से सजे हुए मंच पर मधु और वर श्यामवीर को बिठलाया गया । दोनों ने एक-दूसरे के गले में अपनी-अपनी सूंड़ से मालायें डालीं । सभी हाथियों ने सँड आसमान में उठाकर-चिंघाड़कर उनका स्वागत किया । फिर सभी ने वर-वधू पर पुष्प बरसाये । गुरुजी और उनकी पत्नी ने भी दोनों के मस्तक चूमकर उन्हें सुखी गृहस्थ जीवन के लिये आशीर्वाद दिया । दूसरे दिन प्रातःकाल ही वधू की विदाई थी । आदर्श ने जानबूझकर श्यामवीर को परखने के लिये कोई सामान नहीं
चलते समय बस रास्ते के लिये खाना भर ही उन्हें दिया। पकड़ाया और श्यामवीर की ओर देखकर बोलीं-'दामादजी । देने
के लिये बस हमारे पास बिटिया मात्र ही है ।'


यह सुनकर श्यामवीर उनके पैर छूकर बोला- माताजी आप भी कैसी बातें करती हैं । इतने वर्षों तक जिसे आपने | पाला-पोसा, हर तरह से योग्य बनाया, इस निधि को तो आप मुझे दे रही हैं । देने के लिये इससे बड़ी और भी कोई सम्पत्ति हो सकती है क्या ?'
कुछ पल रुककर फिर वह आगे कहने लगा-'मुझमें इतनी शक्ति है, इतनी योग्यता है कि मैं मनचाही वस्तु जुटा सकूँ। अपने पौरुष से जो चीज लायी जाती है उसी की सार्थकता होती है । दूसरे की दी हुई चीज पर निर्भर रहने वाले और खुश होने वाले तो भिखमगे होते है। आप तो मुझे बस यही आशीर्वाद दीजिये कि मेरी यह सद्बुद्धि और पुरुषार्थ बना रहे ।'
आदर्श को ऊँचे विचारों वाले अपने इस दामाद पर गर्व होने लगा | सिर थपथपाकर गले मिलकर उसने बेटी-दामाद को विदा किया । हाथियों को एक लम्बा जुलूस गाँव के किनारे तक वर-वधू को विदा करने गया । ।
ससुराल से मधु चिन्मय कबूतर से कई बार अपना सन्देश भिजवा चुकी है । उसने पत्र में लिखा था-'माताजी । मैं अपने इस नये घर में बड़ी प्रसन्न हूँ । सभी मेरा बड़ा सम्मान करते हैं और प्यार से 'गृहलक्ष्मी' कहकर पुकारते हैं । पूज्य पिताजी ने मेरा नाम 'मधुलक्ष्मी' रख दिया है । आप मेरी ओर से किसी बात की चिन्ता न करना ।'
और अब आदर्श मधु का यह समाचार सब हाथियों को बताती रहती है ।


उधर अब पंकज और जय का समाचार भी सुनिये । उस घटना के बाद से ही सभी हाथियों ने उसका बहिष्कार कर दिया था । न कोई उनके पास जाता था, न बोलता था । कोई भी हाथी अपनी बेटी का विवाह जय के साथ करने के लिये तैयार नहीं हुआ । लाचार होकर दोनों को वह सुन्दर वन छोड़कर बाहर जाना पड़ा । वहाँ एक हाथी से बहुत-सा दहेज लेकर पंकज ने जय का विवाह भी रचा दिया । ___एक दिन महेन्द्र दादा प्रातः भ्रमण के लिये जा रहे थे । वहाँ उन्होंने एक दुबले-पतले हाथी को बड़े ही उदास और निराश बैठे हए देखा । ध्यान से देखने पर उसकी सूरत कुछ जानी-पहचानी सी लगी । धीरे-धीरे वे उसके पास गये और चौंकते हुए बोले-'तुम जय हो क्या ?'
जय ने सिर उठाकर ऊपर देखा और उन्हें प्रणाम करते हुए भरे स्वर में बोला-'हाँ मैं जय ही हूँ।'
'अरे बेटा । यह क्या हाल हो गया है तुम्हारा ? सुन्दर-सी तुम्हारी काया सूखकर काँटा हो गयी है । पहिचाने भी नहीं जाते तुम तो, बीमार पड़ गये थे क्या ?'



'दादाजी ! बीमारी तो मेरे घर में ही रहती है ।' उदास जय कह रहा था ।
'क्या मतलब ?' दादाजी ने पूछा ।
तब जय की आँखों में आँसू भर आये । केले के पेड के नीचे बैठकर वह अपनी करुण कथा सुनाने लगा-'मेरे पिताजी ने दहेज पर ध्यान दिया, पर कन्या के रूप-गुण न देखे। महाकुरूप, एक आँख की, एक दाँत की हथिनी से मेरा विवाद रचा दिया । चलो यह भी हुआ । मैंने सोचा कि वास्तविक शरीर की नहीं मन के व्यवहार की होती है । इसलिये मैं न बोला, पर क्या बताऊँ दादाजी मेरी पत्नी तो मन की बड़ी कुरूप है, बड़ी ही कर्कश है । धनी बाप की लेडी बडा अभिमान है उसे । मुझे तो अपने आगे तुच्छ समयसी सारे दिन मझसे काम कराती है । रूखा-सखा खाना से नहीं खिलाती, मेरा घर क्या है, नरक है।
बीच में बोल पड़े-'हाँ बेटा ।
दादाजी सिर हिलाते हुए बीच में बोल पटेल यह तो सही है | गृहिणी से ही घर बनता गहिणी पाकर घर स्वर्ग बन जाता है । बुरी गहिणी उसे बना देती है ।'
कुछ रुककर महेन्द्र दादा कहने लगे-'मधु के साथ विवाह न करके तुमने एक बहुत ही अच्छा अवसर खो दिया । ऐसा रत्न तो तुम्हें ढूँढ़े भी न मिलेगा ।'


जय पश्चात्ताप से कहने लगा-'हाँ दादाजी । तब तो मैं | पिताजी के आगे कुछ न बोला था, पर अब सोचता हूँ कि बड़ों की भी हर बात हमें चुपचाप नहीं मान लेनी चाहिये । जो उचित है उसी को स्वीकार करना चाहिये । बड़े हैं इसलिये वह हर बात सही कहेंगे ऐसा नहीं है.....। अब तो मन करता है दादाजी कि पर्वत की ऊँची चोटी से कूदकर आत्महत्या कर लूँ-इसलिये मैं घर से निकला हूँ।' बड़ी ही निराशा से वह कह रहा था ।
महेन्द्र दादा ने उसके सिर पर हाथ फिराया, फिर पीठ थपथपाते बोले-'देखो बेटा । जो हो गया सो हो गया । गहस्थ तो एक तपोवन है, इसमें साधना करनी होती है संयम की, सहिष्णुता की । घबराकर आत्महत्या करना कायरता है । तुम्हारी महानता तभी है जब तुम अपनी पत्नी को भी अपनी सेवा-सहिष्णुता और सद्व्यवहार से बदल दो । अपने को तो सभी सुधार लेते हैं । जो बुराई के रास्ते पर चलने वाले को भी सुधार देता है वही महान् है । तुम इसके लिये प्रयास करो-निरन्तर प्रयास से ही सफलता मिला करती है ।
'सच ही कह रहे हैं आप दादा !' कहकर बड़े ही लौटने के लिये ।


अन्यमनस्क भाव से जय उठ खड़ा हुआ अपने घर वापस लौटने के लिए।

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                             ⍈धन्यवाद⍇

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