Kahani for kids. स्वभाव में परिवर्तन हिंदी कहानी

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 Kahani:- खरगोश । आम के पेड़ के नीचे वह चुपचाप गुमसुम बैठा रहता । न किसी से बोलता न किसी से बातें करता । सभी प्राणियों ने उसका बहिष्कार कर रखा था ।

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एक बार मैत्री नाम की एक कोयल दूर देश से ते-उड़ते आई। वह आम के उस पेड पर ही आकर रुकी, जिसके नीचे अंशू का घर था । अंशू पर निगाह पड़ते ही बोली-'नमस्ते भाई । मैं मैत्री कोयल हूँ । दूर देश से उड़ते-उड़ते यहाँ आई हूँ।'
अंशू ने उसकी ओर आँख उठाकर भी न देखा । नीची निगाह करके ही बोला-'रहोगी यहाँ कुछ दिन ?'
'हाँ ! अभी कुछ दिन तो हूँ ही ।'
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इसके बाद अंशू ने उससे एक भी बात न की । चुपचाप अपने काम में लगा रहा | मैत्री को यह बड़ा बुरा लगा। एक अपरिचित से कुछ तो बातें करनी ही चाहिये । दूर देश |से आये थके यात्री से कुछ तो उसकी जरूरत पूछनी ही चाहिये थी. पर अंशू में तनिक भी शिष्टाचार न था । मैत्री को तेज प्यास लगी थी । अतएव वह इच्छा न रहते हुए भी बोली-'क्या यहाँ कहीं पानी मिल सकता है ?
अंशू बिल के अन्दर गया । एक हाथ में पानी और एक हाथ में खाना लाया । पानी देने के बाद बोला-'भूखी होगी, लो खाना भी खा लो । पानी का खाली बर्तन उठाकर वह फिर बिल के अन्दर घुस गया । मैत्री समझ गयी कि खरगोश का दिल तो बुरा नहीं है, पर इसमें बोलने का शिष्टाचार नहीं है।' __मैत्री अब नन्दन उद्यान में ही रहने लगी थी। उसने देखा कि अंशू से कोई पशु-पक्षी बात करना भी पसन्द नहीं करता । वह खुद किसी से मिलना-जुलना नहीं चाहता था । कोई उसके घर आया तो वह इधर-उधर छिप जाता या फिर बच्चों से कहलवा देता कि पिताजी घर में नहीं हैं।
पत्नी-बच्चों से भी वह प्यार से बहुत कम बातें करता । हर समय खिजलाया-सा रहता ।

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दहेज का लोभ


एक बार अंशू की पत्नी बच्चों को लेकर मायके चली गयी । घर में रह गया अंशू । एक दिन अचानक ही | उसको तेज बुखार आ गया । रात भर वह बिल में पड़ा कराहता रहा । जब वह सुबह भी घर से न निकला तो मैत्री सोचने लगी कि जरूर अंशू बीमार पड़ गया है। पहले तो | उसने सोचा-'बीमार है तो रहने दो । ठीक से सीधे मुँह बात तक तो करता नहीं । हर समय न जाने क्यों मुॅह फलाये रहता है ?' पर दूसरे ही क्षण अपने आपको इन विचारोंके लिये धिक्कारते हुए कहने लगी कि यदि बुरे के साथ हम भी बुरा करने लगे तो फिर हमारी सज्जनता का मूल्य भी क्या रहा ? बुरे को बुराई से नहीं अच्छाई से ही सुधारा जा सकता है।
मैत्री अंशू के घर गयी तो पाया कि वह तेज बुखार से तप रहा है । शरीर के दर्द से छटपटा रहा है । मैत्री ने उसके मुँह में पानी डाला तो अंश ने तुरन्त ही आँखें खोल दी । उसकी आँखों में बड़ी कृतज्ञता का भाव भरा था । 'ओह मैत्री दीदी । तुमने इतना कष्ट किया ।' कहकर अंशू ने तेज बुखार के कारण आँखें मूंद लीं ।'
___ 'मैं अभी डाक्टर को लेकर आयी ।' कहकर मैत्री उड़ चली तेजी से चेता लोमड़ी के यहाँ । उसने न अपने खाने की परवाह की और न आराम की । चौबीस घण्टे उसके सिरहाने बैठी रहती । निश्चित समय पर दवा देती, फल खिलाती, सिर पर ठण्डे पानी की पट्टी रखती और उसका बदन दबाती । अंश को इस सबसे मन ही मन बड़ी लज्जा आती । वह सोचता मैंने तो इससे कभी सीधे मुँह बात भी न की थी । कभी इससे इसके सुख-दुःख की भी न पूछी थी । फिर भी यह मेरी कितनी सेवा कर रही है-यह सोचकर उसे अपने ऊपर बड़ी ग्लानि आती।
चेता लोमड़ी द्वारा नन्दन उद्यान में सभी को अंशू की बीमारी की बात पता चल गयी थी, पर कोई उसे देखने तक न आया । एक दिन उससे न रहा गया । वह मैत्री से कह ही बैठा-'दीदी ! मैं इतना बीमार रहा, फिर भी कोई पशु-पक्षी मुझे देखने न आया । तुम न आयी होती तो मेरे प्राण ही निकल गये होते ।'
बुरा न मानना, अंशू भैया एक बात पूछू !' मैत्री बोली।
हूँ......।' अपने कान हिलाकर, गर्दन टेढ़ी करके उसने स्वीकृति में सिर हिलाया ।
'क्या तुम भी किसी के सुख-दुःख में भाग लेते हो | मैत्री पूछ रही थी।
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'नहीं तो ।' धीमे स्वर से पुतली हिलाकर अंशू बोला ।
'तो फिर दूसरों से कैसे उम्मीद करते हो कि वे तुम्हारे दुःख दर्द में साथ देंगे । गम्भीर बनी मैत्री कह रही थी-बरा न मानना भाई । जो किसी से मिलना-जुलना नहीं चाहता. दूसरों के आने पर मुँह लटका लेता है, घर में छिप जाता है, | ऐसे मनहूस से कौन सम्बन्ध रखेगा ? हम किसी को क्या दे सकते हैं ? पर हाँ मीठी प्यार भरी वाणी से सभी का मन जीत सकते हैं । चुप्पी और कठोर बोली छोड़कर मीठे स्वर में सभी से बातें करो । फिर देखो कौन तुम्हें नहीं चाहता ? जैसा व्यवहार तुम करते हो उससे न तुम्हें सुख मिल सकता है और न दूसरों को । दूसरों से वह व्यवहार न करो जो तुम्हें अपने लिये पसन्द नहीं ।'
आज पहली बार किसी ने अंशू को इतने खरे शब्दों में उसके व्यवहार की कमी बताई थी । यह सुनकर उसकी आँखें खुल गयी थीं । ओह । तो मेरे रूखे व्यवहार के कारण सभी मुझसे दूर रहना चाहते हैं ?' वह मानो अपने आप से कहने लगा।
और क्या ? दिल से तो तुम बहुत अच्छे हो, पर दिल की गहराई तक झाँका कैसे जा सकता है ? मन में क्या है ? यह व्यवहार से ही तो पता लगता है । मन को अच्छा बनाओ
और व्यवहार को मीठा । फिर देखो सभी तुम्हें सिर माथे पर | बिठायेंगे ।' मैत्री ने कहा

__ 'मैं कितनी गलती पर था ? अपनी गलती जल्दी ही सुधार लँगा ।' मन ही मन उसने कहा और फिर सिर को खजाते हुए कुछ सोचने लगा।

अंशू जब ठीक हो गया तो उसने नन्दन उद्यान के सभी पशु-पक्षियों को निमन्त्रण दिया । सभी आश्चर्य कर रहे थे कि किसी से कोई सम्बन्ध न रखने वाला अंशू आज इतना उदार कैसे बन गया 1
किस खुशी में यह इतनी मजेदार दावत दी गयी है ?' | चटखारे भरती हुई चंचल गिलहरी पूछने लगी।
'अपने ठीक होने की खुशी में । यदि यह मैत्री दीदी न होती तो मेरे प्राण-पखेरू उड़ गये होते । इन्हीं ने अपनी सेवा से मुझे जीवनदान दिया है ।' मेहमानों को खाना परोसती मैत्री की ओर इशारा करके अंशू ने कहा ।
अंशू की पत्नी और बच्चे भी उसके स्वभाव और व्यवहार | परिवर्तन पर बड़े खुश थे । वे इसके लिये मन में मैत्री कोयल को बहुत-बहुत धन्यवाद दे रहे थे ।
कुछ दिनों के बाद मैत्री कोयल अंशू और नन्दन उद्यान के सभी प्राणियों से विदा लेकर अपने देश उड़ चली । अंशु को उसके जाने का बहुत दुःख हो रहा था । उसने मैत्री के ढेरों उपहार दिये, दूर तक वह उसे छोड़ने गया ।
दो महीने बाद मैत्री को अंशू का पत्र संदीप कबूतर द्वारा मिला । उसमें लिखा-'मैत्री दीदी । जीवन भर मैं तुम्हें भूल नहीं सकता। तुमने अपने प्यार भरे व्यवहार से मेरे जीवन की धारा ही बदल दी । तुम्हें जानकर खुशी होगी कि नन्दन उद्यान के सभी पशु-पक्षी अब मुझे बहुत चाहने लगे हैं।

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सन्तोष से कुहुक-कुहुक कर उठी मैत्री । फिर वह अपने मन में कहने लगी-'दूसरों को अच्छाई का रास्ता दिखाने में ही इस जीवन की सार्थकता है।'

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                              ⍈  धन्यवाद ⍇

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