Kahani, hind Kahani चूहे की विदेश यात्रा-

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Kahani:-  लन्दन के एक बडे से भवन में जार्ज नाम का एक चूहा रहता था । वह विदेश भ्रमण में बड़ी रुचि रखता था । अनेक देशों में वह घूमा था । यही कारण था कि जगह-जगह के लोगों को, उनकी वेश-भषा, आचार-व्यवहार, सस्कृति, रहन-सहन को देखने-परखने से उसका ज्ञान भी बड़ा व्यापक हो गया था ।
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जार्ज ने भारत देश की बडी प्रशंसा सुनी थी । अतएव उसके मन में भारतवर्ष देखने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई । एक बार मौका देखकर जार्ज चुपके से कर्मचारियों की नजर बचाकर लन्दन से आने वाले एयर इण्डिया के एक वायुयान में सवार हो गया । 

कहीं कोई उसे बीच में ही मारकर भगा न दे-इस भय से वह चुपचाप 'प्रसाधन' में छिपकर बैठा रहा । दिल्ली का पालम हवाई अडडा आने पर ही उसने चैन की साँस ली । जब सब यात्री उतर कर चल दिये और हवाई जहाज पूरी तरह खाली हो गया तो जार्ज भी चुपचाप सभी की नजर बचाकर उतर गया ।
झिलमिलाती हुई रोशनी में नहाती दिल्ली की चहल-पहल और रंगीनियों को देखते हुए जार्ज चुपचाप चला जा रहा था । इस अपरिचित देश में कहाँ रुकना चाहिये ? यही वह मन में सोचता जा रहा था । तभी उसकी निगाह सामने से आते चूहे और चुहिया पर पड़ी । वे दोनों उसके पास जाकर | रुक गये । चूहा कहने लगा-'नमस्ते हमारे विदेशी अतिथि । आप कुछ परेशान से लगते हैं, कहिये हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं?
जार्ज उनके मृदु व्यवहार से बड़ा ही प्रभावित हुआ । बोला-'भाई तुमने ठीक पहिचाना । मैं अभी-अभी लन्दन से आया हूँ । यहाँ मैं किसी को जानता नहीं अतएव कहाँ रुकूँ, यही सोचकर चिन्ता कर रहा था ।'

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 दहेज का लोभ


'भाई। यदि ऐसी ही बात है, तो आप मेरे अतिथि बनें । इससे मुझे बड़ी खुशी होगी । मेरा नाम तन्मय है। आप मझे तनु कह सकते हैं और यह तुम्हारी भाभी जी।' तन्मय चूहा बोला ।
'नमस्कार भाभीजी । भारतीय परम्परा के अनुसार दोनों हाथ जोड़कर जार्ज बोला । तन्मय की पत्नी ने भी प्रत्युत्तर में हाथ जोड़कर अभिवादन किया ।
'चलो फिर घर चलें, वहाँ बैठकर बातें होंगी ।' तन्मय ने कहा । रास्ते में वह जार्ज को बतलाता रहा कि अशोक होटल के बहुत पास ही उसका घर है । अतएव खाने की कोई कठिनाई नहीं । नई-नई खाने की चीजें रोज खाने को मिल जाती हैं ।
कुछ मील का रास्ता पार करके सभी घर पहुँचे । एक छोटे से, पर साफ-सुथरे बिल में तन्मय का घर था । तन्मय और उसकी पत्नी ने जार्ज का खूब स्वागत-सत्कार किया । भोजन के बाद तन्मय ने जार्ज के स्वागत में अपने चार-पाँच मित्रों को एकत्रित कर लिया । कोई नाचने लगा तो कोई गाने । बड़ा ही हँसी-खुशी का मनोरंजक वातावरण बन गया । 
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जार्ज इतनी देर से सुन रहा था कि तनु और उसके दोस्त अंग्रेजी में ही बातें कर रहे हैं, अग्रेजी गाने गा रहे हैं । उसने बड़े आश्चर्य से पूछा-'क्या आपके देश की कोई भाषा नहीं'
'है क्यों नहीं । हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है ।' तन का दोस्त बतलाने लगा । पर आपकी समझ में आ जाये, इसलिये हम आपकी भाषा में बातें कर रहे हैं।'


_ मैंने यहाँ आने से पहले आपकी भाषा अच्छी तरह सीख ली है और हम विदेशी तो बाहर जाने पर सदैव अपनी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। अपनी राष्ट्रभाषा, अपने देश के गौरव का प्रतीक है। जार्ज गर्व से सिर तानकर बोला ।
हमारे यहाँ तो अंग्रेजी का ही बहुत प्रचार है । विशेष रूप से शिक्षा में, सरकारी काम-काज आदि में ।' तन्मय बोला।
_ 'ओह ! तभी तुम्हारा देश उतनी प्रगति नहीं कर पा रहा, जितनी कि वह कर सकता है। अपनी मातृभाषा, राष्ट्रभाषा को छोड़कर पराई भाषा के प्रयोग से भला कहीं अपनी प्रतिभा का भी विकास हो सकता है ?' जार्ज ने कहा।
तन्मय और उसके मित्र बड़े ही लज्जित हुए । बात उनकी भी समझ में आ रही थी। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि अब वे सदैव मातभाषा का ही प्रयोग करेंगे। अपने बच्चों में भी विदेशी भाषा के प्रति मोह न जगायेंगे ।
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दूसरे दिन तन्मय ने जार्ज को दिल्ली घमानी शुरू कर दी । लालकिला, कतबमीनार, जन्तर-मन्तर, चिड़ियाघर आदि अनेक स्थान दिखाये । जार्ज तन की अतिथि परायणता से भी बड़ा ही प्रसन्न था । जितनी आत्मीयता और स्नेह उसे भारतवर्ष में मिला था उतना तो अपने देश में भी नहीं मिला था । वहाँ तो भौतिक सुख-सविधाओं का ही अम्बार था, पर सच्चा प्यार पाने के लिये प्राण तरस उठते थे।

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 स्वभाव में परिवर्तन

पन्द्रह दिन तक दिल्ली की खूब सैर करने के बाद जार्ज ने अपने मित्र से विदा चाही, जिससे वह भारत के अन्य दर्शनीय स्थान देख सके । विदा के पूर्व तनु ने एक विशाल प्रीतिभोज का भी आयोजन किया, जिसमें उसके बहुत से मित्र भी थे । जार्ज अपने मित्र के स्नेह पूर्ण व्यवहार से बड़ा ही कतकृत्य था ।
विदा के दिन तन्मय ने पूछा-'दोस्त । सच-सच बताना कि हमारा देश तुम्हें कैसा लगा?'


_ 'मैं जो भी कहूँगा सच ही कहूँगा । सच कहने के लिये चाहे वह कठोर ही क्यों न हो, मैं बहुत बदनाम हूँ ।' अपनी बड़ी-बड़ी सुन्दर आँखों को ऊपर उठाकर, मूछों को फड़फड़ाकर जार्ज बोला ।
फिर पल भर चुप रहकर बोला-'दोस्त । तुम्हारा देश या सना था वैसा ही पाया I पृथ्वी पर स्वर्ग जैसा लगता
प्रकति ने इसे खुले हाथों से वरदान दिया है। पारस्परिक प्यार और सहानुभूति जितनी मैंने यहाँ पायी है ओर किसी देश में नहीं है । ईश्वर में आस्था-विश्वास तुम्हें बहुत से पापों से बचा लेता है । तुम्हारा देश और संस्कति बहुत महान है. पर.........कहते हुए बड़े ही श्रद्धा के भाव भरे थे जार्ज की आँखों में।
‘पर क्या ?' तन्मय ने तुरन्त पूछा। __ 'पर भाई किसी देश की संस्कृति की महानता तभी तक रहती है, जब तक कि वहाँ के रहने वाले उसे बनाये रखें। | तुम्हें सुनकर बरा तो लगेगा, पर सच है तो कहँगा ही कि तम | लोग अपने देश के गौरव को उसकी महत्ता को भुला बैठे!
हो । तुम विदेशी भाषा का, विदेशी सभ्यता का अन्धानुकरण कर | रहे हो । ध्यान रखो। हमारी भौतिकता तुम्हें कभी सूख नहीं दे सकती।
यदि भौतिक सुख-साधनों से ही आत्म-शान्ति मिल पाती तो फिर हजारों विदेशी उसे पाने के लिये तुम्हारे देश में ही क्यों आते ? यदि तुम अपनाना ही चाहते हो तो हमारे गुण
अपनाओ-सफाई, ईमानदारी, शिष्टाचार, नैतिकता आदि । ओह ! मैं तो उपदेश ही देने लग गया.......तुम भी मन में क्या सोच रहे होगे ?' कहते-कहते जार्ज अनायास ही चुप हो गया ।
_ 'नहीं मित्र । तुम सच ही कह रहे हो । अपने दिशवासियों को मैं तुम्हारा सन्देश जरूर दूंगा ।' तन्मय भाव भरे स्वर में बोला
तन्मय ने जार्ज को बहुत सारे उपहार दिये । दोनों दोस्त | देर तक एक-दूसरे के गले मिलते रहे । जार्ज कहने लगा-'भाभीजी को लेकर आओ न कभी।'
'जरूर.. जरूर....' तनु की पत्नी प्रसन्न होते हुए बोली।


'मैं तुमको, तुम्हारे स्नेह-आत्मीयता को कभी भुला नहीं सकता ।' जार्ज रुंधे गले से बोला और आँसू भरकर चलने लगा।


चलते-चलते जार्ज बार-बार पीछे मुड़कर अपने स्नेही मित्रों को देखता जाता था । तन्मय और उसकी पत्नी देर तक खडे। होकर हाथ हिला-हिलाकर उसे विदाई देते रहे। जार्ज जब आँखों से ओझल हो गया तो तनु बोला-'चलो वापस चलें।'
'हाँ चलना ही होगा......।' सूने रास्ते के एकटक देखती | उसकी पत्नी बोली।

दोनों ने घर की ओर कदम जरूर बढ़ाये, पर उन्हें लग रहा था कि उनके जीवनभर का परम स्नेही मित्र बिछुड़ गया है।

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